Mulaya Singh Yadav ही नहीं, कई राजनीतिक परिवारों में बजता रहा है बगावत का बिगुल !

परिवारवाद, वंशवाद और भाई-भतीजावाद भारतीय राजनीति का कटु सत्य है. लिहाजा, राजनीति क परिवार में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष लाजिमी है. राजनीतिक विरासत को लेकर भाई-भाई के बीच, तो कभी भाई-बहन, या चाचा-भतीजे के बीच भी खींचतान देखने को मिलती रही है. लेकिन जब ये लड़ाई चरम पर पहुंचकर शांत होती है. तो साफ नजर आता है कि इस पूरी लड़ाई में एक को फायदा हुआ, तो दूसरे को भारी नुकसान. आज हम आपको ऐसे ही कुछ राजनीति क परिवारों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके बीच विरासत को लेकर खूब खींचतान हुई और खून के रिश्ते, इस लड़ाई में टूटते चले गए. इनमें से कई लोगों ने अपनी राह बदल ली. तो कुछ लोग साथ जरूर दिखाई देते हैं, लेकिन आधे अधूरे मन से.
गांधी परिवार

भारतीय राजनीति में संजय गांधी (Sanjay Gandhi) वो दबंग चेहरा थे , जो अपनी बेबाक़ी के लिए जाना जाता थे. संजय गांधी (Sanjay Gandhi)अपने बड़े भाई राजीव गांधी (Rajiv Gandhi)से एक दम अलग थे. राजीव जहां शांत स्वभाव के थे, वहीं संजय बेहद ज़िद्दी और ग़ुस्सैल थे. 1970 के दशक में संजय गांधी (Sanjay Gandhi) को इंदिरा गांधी (Indira Gandhi)के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता था. लेकिन 23 जून, 1980 को उनका आकस्मिक निधन हो गया. इसके बाद इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) का झुकाव बड़े बेटे राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की ओर चला गया. और इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) से अनबन के चलते संजय गांधी (Sanjay Gandhi) की पत्नी मेनका गांधी (menka gandhi)को पीएम आवास भी छोड़ना पड़ा. आज पूरी कांग्रेस पार्टी राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) के परिवार के कब्जे में है, तो संजय गांधी (Sanjay Gandhi) के परिवार के पास वो रुतबा नहीं है. जो शायद संजय गांधी (Sanjay Gandhi) के रहते उनका होना चाहिए था.
लालू परिवार

पिता की विरासत पर पकड़ को लेकर लालू के दोनों बेटे तेजप्रताप (TejPratap Yadav) और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav)की लड़ाई भी किसी से छिपी नहीं है. तेजस्वी (Tejasvi Yadav) और तेजप्रताप कई बार मीडिया में भी एक-दूसरे को नसीहत देते हुए दिखाई देते रहे हैं. फिलहाल लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल पर उनके छोटे बेटे तेजस्वी (Tejashwi Yadav) का वर्चस्व दिखाई पड़ता है. तो तेजप्रताप (TejPratap Yadav) अब हासिये पर नजर आते हैं.
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पासवान परिवार

बिहार की लोक जनशक्ति पार्टी में भी ऐसा ही हुआ. रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद कुछ ही दिन में पार्टी दो फाड़ हो गयी. चाचा पशुपति पारस ने, अपने भतीजे चिराग पासवान को चुनौती दे दी. और पार्टी का विभाजन हो गया. लोक जनशक्ति पार्टी को भले ही रामविलास पासवान ने सींचा है. लेकिन अब इस पार्टी पर उनके भाई ने कब्जा कर लिया है. हालांकि राजनिति में ऐसा कम ही देखा गया है. जब बड़े भाई की मौत के बाद, उसकी राजनीतिक विरासत बच्चों को न मिलकर छोटे भाई को मिली हो.
मुलायम सिंह यादव परिवार

यही हाल उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी का भी रहा. मुलायम सिंह की राजनीतिक विरासत को लेकर चाचा और भतीजा आमने-सामने आ गये. मुलायम के भाई शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच जमकर विवाद हुआ. झगड़ा इतना बढ़ गया कि 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवपाल यादव ने अपनी अलग पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी, लोहिया बना डाली. हालांकि वो समाजवादी पार्टी को खास नुकसान नहीं पहुंचा पाए.
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वहीं मुलायम सिंह के परिवार में एक और विवाद सामने आ गया. जब उनकी बहू अपर्णा यादव भाजपा में शामिल हो गईं.

आपको बता दें कि अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव की पहली पत्नी से हुए बेटे हैं. जबकि उनकी दूसरी पत्नी के बेटे प्रतीक यादव हैं. जिन्हें राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी तो नहीं है. लेकिन उन्हें बतौर मुलायम सिंह के बेटे, समाजवादी पार्टी में वो जगह भी नहीं मिल सकी, जिसकी उनकी पत्नी अपर्णा यादव को उम्मीद रही होगी. इसीका ह नतीजा रहा कि अपर्णा यादव खुद को समाजवादी पार्टी में उपेक्षित महसूस करती रहीं. आखिरकार उन्होने भाजपा का दामन थाम लिया.
चौटाला परिवार

हरियाणा में भी चौटाला परिवार के मुखिया ओम प्रकाश चौटाला को जब शिक्षक भर्ती मामले में जेल जाना पड़ा. तब परिवार की लड़ाई सरेआम हो गयी. चौटाला के दोनों बेटों अजय चौटाला और अभय चौटाला के मतभेद सामने आ गये, और विरासत की लड़ाई तेज हो गयी. स्थिति यहां तक आ गयी की अजय चौटाला को इंडियन नेशनल लोकदल से बाहर निकाल दिया गया. इसके बाद अजय चौटाला ने अपनी अलग पार्टी बना ली. फिलहाल अजय चौटाला की पार्टी के सपोर्ट से हरियाणा में भाजपा की सरकार चल रही है.
ठाकरे परिवार

महाराष्ट्र में भी बाल ठाकरे की पार्टी शिवसेना में विरासत को लेकर विद्रोह हुआ. बाला साहब ठाकरे ने साल 2004 में जब अपने बेटे उद्धव को शिवसेना का अध्यक्ष घोषित कर दिया, तो भतीजे राज ठाकरे नाराज हो गये और 2006 में पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली. हालांकि राज ठाकरे कोई कमाल नहीं दिखा पाए, लेकिन उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को आगे बढ़ाया और शिवसेना के सिंद्धांतो से समझौता कर, आज वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने हुए हैं.
करुणानिधि परिवार

दक्षिण भारत के कई राज्य में व्यक्ति आधारित क्षेत्रीय दलों का ही प्रभुत्व रहा है. इसलिए उत्तराधिकार की लड़ाई वहां भी देखने को मिलती है. तमिलनाडु में करुणानिधि की द्रविड़ मुनेत्र कडगम, (डीएमके) में सत्ता का संघर्ष उनके दो बेटों एम.के स्टालिन और अलागिरी के बीच रहा. साल 2016 में करुणानिधि ने स्टालिन को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया, तो अलागिरी ने विद्रोह कर दिया. नतीजतन 2018 में उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. फिलहाल करुणानिधि की दूसरी पत्नी के बेटे एम के स्टालिन तमिलनाडू के मुख्यमंत्री हैं.
एनटी रामाराव परिवार

आंध्र प्रदेश में वर्ष 1995 में तेलगूदेशम पार्टी के तत्कालीन सर्वे सर्वा एनटी रामाराव को सीएम के पद से हटाकर उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू खुद मुख्यमंत्री बन गये थे. उस समय नायडू ने आरोप लगाया था कि एनटी रामाराव के बदले उनकी दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती शासन चला रही हैं. उन्होंने पार्टी के अंदर सास-ससुर के खिलाफ एक अलग गुट बना लिया और उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया. इसके बाद मुख्यमंत्री पद से एनटी रामाराव को इस्तीफा देना पड़ा था.
तो इस परिवारों के झगड़ों को देखकर आप समझ ही गए होंगे, कि राजनीति में विरासत का हस्तांतरण इतना भी आसान नहीं है. कोई लाख कोशिशें कर ले, लेकिन जो इस विरासत में खुदको पिछड़ता हुआ पाता है, वो कहीं न नहीं दूसरे को नुकसान पहुंचाने की भरसक कोशिशें करता है. लेकिन इस विरासत को वही संभाल पाता है, जिसके पास किस्मत, और काबिलियत दोनों हो.