
जगदलपुर : बस्तर के जंगल में कुंलाचे भरते हुये हिरणों को पूर्व के वर्षो में देखा जाता था, लेकिन अब यह स्थिति काल बदलने से समाप्त हो गई है। अब न तो हिरण दिखते हैं और न ही दूसरे वन्य प्राणी। इसे देखते हुये बस्तर वनवृत्त के सरंक्षक के उठाये हुये कदम से अब इनकी एक बड़ी संख्या जंगलों में दिखाई पड़ रही है। चीतलों के साथ-साथ नीलगाय व अन्य जानवर को मनगट्टा से लाकर कांगेर घाटी के तीरथगढ़ जलप्रपात के पास ही एक डीयर पार्क बनाकर इन्हें स्थापित किया गया है।
बस्तर के जंगल में कुंलाचे भरते हुये हिरणों को पूर्व के वर्षो में देखा जाता था
इसके लिये दस हेक्टेयर से अधिक बड़े क्षेत्र में तारों की घेराबंदी कर सुरक्षा की दृष्टि से इन्हें रखा गया है। अब इनकी संख्या बढ़ रही है और इन चीतलों को चौकड़ी भरते हुये तीरथगढ़ व कुटूमसर के दर्शन के लिये आये हुये पर्यटक देखते हैं। इससे बस्तर के जंगलों में पुन: रौनक की स्थिति आ रही है तथा इस डीयर पार्क में रखे गये चीतलों की वंशवृद्धि के साथ इन्हें बस्तर के विभिन्न वन क्षेत्रों में छोड़ा जायेगा। इसी प्रकार यहां पर नीलगाय भी लाई गई है जिससे आने वाले कुछ समय के बाद इनकी भी संख्या बढ़ सकती है। चीतलों को प्राकृतिक भोजन प्रदान करने डीयर पार्क में विभिन्न प्रकार की व्यवस्थायें की जा रही है।
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इसके अंतर्गत प्राकृतिक रूप से घास उगाने के लिये भी प्रयास किया जा रहा है। वर्तमान में हरा चारा व अन्य पोषण आहार डीयर पार्क में दिया जा रहा है। अब प्राकृतिक रूप से घास का उपज हुई तो इसकी भी जरूरत कुछ समय बाद नहीं रहेगी। साथ ही आस-पास के रहने वाले गांवों के ग्रामीणों कोभी इस डीयर पार्क के जानवरों की सुरक्षा के लिये जागरूक किया जा रहा है। बस्तर के ग्रामीणों में मांस का सेवन होता है और पिछले वर्षाे में हिरण प्रजाति के जानवरों का मांस तथा अन्य सामग्री प्राप्त करने के लिये जमकर शिकार हुआ। जिससे आज यह प्रजाति बस्तर के जंगलों में विलुप्त हो चुकी है।