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नईदिल्ली : हम कचरा एकत्र करने वाले नहीं हैं

नई दिल्ली  :  उच्चतम न्यायालय ने देश में ठोस कचरे के प्रबंधन के बारे में अधूरी जानकारी के साथ 845 पेज का हलफनामा दाखिल करने पर केंद्र सरकार की आज तीखी आलोचना की और कहा कि शीर्ष अदालत कोई ‘‘कचरा एकत्र करने’’ वाला नहीं है। शीर्ष अदालत ने इस हलफनामे को रिकार्ड पर लेने से इंकार करते हुये कहा कि सरकार हमारे यहां ‘कबाड़’ नहीं डाल सकती है। न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि आप क्या करने का प्रयास कर रहे हैं? क्या आप हमें प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं? हम इससे प्रभावित नहीं हुए हैं। आप सब कुछ हमारे यहां रखना चाहते हैं। हम इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं। पीठ ने नाराजगी भरे शब्दों में कहा कि ऐसा मत कीजिये। जितना कुछ भी कबाड़ आपके पास है, आप हमारे समक्ष गिरा रहे हैं। हम कचरा संग्रह करने वाले नहीं हैं। यह आपको पूरी तरह स्पष्ट होना चाहिए।
पीठ ने केंद्र को तीन सप्ताह के भीतर एक चार्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जिसमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि क्या राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों ने ठोस कचरा प्रबंधन नियम 2016 के प्रावधानों के अनुरूप राज्य स्तर के परामर्श बोर्ड गठित किए हैं। न्यायलय ने राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में इन बोर्ड के गठन की तारीख, इनके सदस्यों के नाम तथा उनकी बैठकों का विवरण भी पेश करने का निर्देश सरकार को दिया है। इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही केन्द्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि वह आज दिन में 845 पेज का हलफनामा दाखिल करेंगे।  लेकिन जब पीठ ने कुछ सवाल किये तो वकील उनका सही जवाब देने में असमर्थ रहे। उन्होंने न्यायालय को सूचित किया कि उन्हें 22 राज्यों से राज्य स्तर के परामर्श बोर्ड के गठन के बारे में सूचना मिली है ओर उसने संबंधित राज्यों से इसकी जानकारी मिलने की तारीख को सूचीबद्ध किया है।
इस पर पीठ ने कहा कि ऐसा हलफनामा दाखिल करने का कोई औचित्य नहीं है जिसमे अपेक्षित जानकारी नहीं हो। हम इस हलफलनामे को रिकार्ड पर नहीं लेंगे। आपने इसे देखा नहीं है और आप चाहते हैं कि हम हलफनामे को देखें। न्यायालय ने पिछले साल 12 दिसंबर को केंद्र से कहा था कि सभी राज्यों के साथ ठोस कचरा प्रबंधन के मसले पर विचार करके सारा विवरण हमारे समक्ष पेश कीजिए। शीर्ष अदालत ने 2015 में डेंगी की वजह से सात साल के बच्चे की मृत्यु के मामले का स्वतरू संज्ञान लिया था। आरोप था कि पांच निजी अस्पतालों ने उसका उपचार करने से इंकार कर दिया था और उसके हताश माता पिता ने भी बाद में आत्महत्या कर ली थी।
 

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