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कहीं आपने तो नहीं लगाया चिट फंड में पैसा!

भारतीय रिज़र्व बैंक की चेतावनियों के बावजूद बेहद कम समय में अमीर बनने की चाहत लोगों के मेहनत की कमाई को डुबो रही है. आम लोगों से सैकड़ों-हजारों करोड़ इकट्ठे करने के बाद जब पैसों की वापसी का समय आता है तो चिटफंड कंपनियां अपनी दुकान बंद कर लेती हैं. ऐसे में लोगों के पास अपनी किस्मत को कोसने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. कुछ ऐसा ही शारदा घोटाले में हुआ है. शारदा चिटफंड स्कैम में लोगों के साथ बड़े वादे किए गए थे. उनकी रकम पर 34 गुना रिटर्न देने का भी वादा किया गया था. अब सवाल उठता है कि कैसे आम आदमी पहचाने की उसके साथ स्कीम में फ्रॉड हो रहा है. आइए जानें इससे जुड़े सवालों के जवाब….

सवाल: RBI, सेबी के बावजूद ये कंपनियां कैसे चलती है?
जवाब:
 चिटफंड कंपनियों को किसी खास योजना के तहत खास अवधि के लिए रिजर्व बैंक और सेबी की ओर से आम लोगों से मियादी (फिक्स्ड डिपाजिट) और रोजाना जमा (डेली डिपाजिट) जैसी योजनाओं के लिए पैसे जुटाने की अनुमित मिली होती है. जिन योजनाओं को दिखा कर अनुमति ली जाती है, वह तो ठीक होती हैं, लेकिन अनुमति मिलने के बाद ऐसी कंपनियां अपनी मूल योजना के अलावा कई और लुभावनी योजनाएं शुरू कर देती हैं.

ये कंपनियां जमा रकम पर 5-7 साल में 10 गुना मुनाफा (रिटर्न) देने की बात करती है. इन कंपनियों के एजेंट गांव और छोटे कस्बों में जाकर बड़े मुनाफे की गारंटी देकर मोटी रकम लोगों से ऐठ लाते हैं. जब रकम वापस करनी होती है तब कंपनी की ओर से दिए गए चेक बाउंस होने लगते हैं और बाद में कंपनी बंद हो जाती है

पोस्ट आफिस और बैंक जहां आठ से नौ फीसदी ब्याज देते हैं, वहीं ऐसी कंपनियां रकम को दोगुनी और तीनगुनी करने के वादे करती हैं. दरअसल, इन तमाम योजनाओं में एक बात आम है, वह यह कि नए निवेशकों के पैसों से ही पुराने निवेशकों की रकम चुकाई जाती है. यह एक चक्र की तरह चलता है. दिक्कत तब होती है जब नया निवेश मिलना कम या बंद हो जाता है

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